थोडा रुक कर चल ज़िंदगी
थोड़ा झुककर चल ज़िंदगी
उलझ गयी है राहे सभी
जरा सँभलकर चल ज़िंदगी
सावन है आँखों से बहता
भीगा है खामोश चेहरा
दर्द की कैद से कुश न कहता
सहमा सहमा है ये गुमसुम चेहरा
हर तरफ है कोहरा घना
मुश्किल हो गया है साँस लेना
दूर दूर तक कोई नहीं
मंज़िल तक है सफ़र तन्हा
इस दर्द भरे आलम में
मुमकिन नहीं अब दौड़ना
थोडा रुक कर चल ज़िंदगी
थोड़ा झुककर चल ज़िंदगी
उलझ गयी है राहे सभी
जरा सँभलकर चल ज़िंदगी